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Hey Baby!

बेगूसराय, (बिहार)…

साहनी निवास।

"मां… मां…"

"अरे काहे गला फाड़ रहीं हो? सुनाई दे रहा हैं हमको! बोलो का बोल रही हो?", सुधा जी उसकी आवाज़ पर थोड़ा डपटते हुए बोलती हैं।

उसकी? यानी यति की! यति अपनी मां के सामने होकर बोलती हैं, "हमको नहीं करना इ शादी। तुमको मालूम हैं ना हमको पढ़ना हैं।"

सुधा जी उसे एक नज़र देख कर उसकी ओर पालक बढ़ाते हुए कहती हैं, "ह तो कौउन बोला तुमको मत पढ़ना? अपने ससुराल जाकर पढ़ लेना! पहीले इ लो, इ काटो…"

यति आँखें बड़ी किए कभी पालक को देखती हैं तो कभी अपनी मां को! वो गुस्से में झुंझलाते हुए बोलती हैं, "हमको नहीं काटा! तुम हमको अपनी तरह बनाना चाहती हो ना…"

सुधा जी उसे घूरते हुए कहती हैं, "होश ठिकाने हैं तुम्हारा, का बोल रही हो?"

यति कुछ पल ख़ामोश होकर बस रूआसा चेहरा बनाएं आंखों में आंसू लिए एक टक सुधा जी को देखती हैं और फिर चिढ़ते हुए बोलती हैं, "ठीक हैं! करो तुम लोगों को जो करना हैं करों। हम भी कुछो नहीं बोलेंगे…", बोल कर यति जल्दी जल्दी पालक काटने लगती हैं।

सुधा जी गहरी सांस लेकर छोड़ते हुए उसके पास आकर उसके बालों पर हाथ फेरते हुए बोलती हैं, "काहे नहीं समझती हो? उ लोग बहुत बड़े आदमी लोग हैं और आगे से तुम्हरे लिए रिश्ता लेकर आए हैं। अगर हम और तुम्हारे बाबा अपना पूरा ज़िंदगी भी लगा देते ना तभो इतना अच्छा और बड़का परिवार तुमको नहीं मिलता। इसीलिए कह रहे हैं गुड़िया…"

यति सुधा जी की ओर देखती हैं। सुधा जी उसके गाल पर हाथ रख कर बोलती हैं, "हम कहेंगे ना उ लोग से।"

यति मुंह बनाते हुए कहती हैं, "हटो हमको काम करने दो।", बोल कर उसने जैसे ही चाकू पकड़ा कुकर की सीटी की तेज़ आवाज़ सुनकर यति के हाथ से चाकू छूट कर उसके पांव पर जा लगा और हाथ पालक की थाली पर और अगले ही पल पूरा पलक यति के कदमों में फैला हुआ था। ग़रिमत ये थीं कि यति के पांव पर चाकू लगने से कोई खरोच नहीं आई थीं। यति ज़मीन पर फैले पालक को देखती हैं और फिर अगले ही पल रूआसी शक्ल बनाएं अपनी मां को देखती हैं। सुधा जी अपनी माथे पर हाथ रखें ज़मीन पर देख रहीं थीं। यति को अपने तरफ़ देखता पाकर सुधा जी गुस्से में भड़कते हुए बोलती हैं, "एको काम तुमसे सही से नहीं होता ना! अब तो सुधार जाओ ब्याह होने वाला हैं तुम्हारा… जहां जाओगी ऊहा लोग हमको ताना मारेगा का सीखाई हैं मां!"

यति मुंह बनाते हुए बोलती हैं, "हां तो हम जानबूझ कर थोड़े किए हैं। और जो हमको बोलेगा ना तो का हम उसको ऐसे ही छोड़ देंगे?"

सुधा जी गुर्राते हुए बोलती हैं, "ख़बरदार जो अपने ससुराल जाकर इ ज़बान कैची निहर (जैसे) चलाई तो।"

"इ सब साफ़ करो और आज का पूरा खाना तुम्हीं बनाओगी उ भी अकेले…", बोल कर सुधा जी किचन से बाहर निकली तो पीछे से यति चिल्लाते हुए बोली, "हम नहीं करेंगे।"

सुधा जी दरवाज़े पर रूकी और पलट कर यति को घूरते हुए बोलती हैं, "हां तो अपना खाना देखी लेना हमारे पास आना भी नहीं।"

सुधा जी की धमकी यति साफ समझ रहीं थीं। वो चिढ़ते हुए बोलती हैं, "हां! हां! जाओ… जाओ धमकाओ मत हमको।", बोल कर वो नीचे झुकी लेकिन तभी उसके मुंह से तेज़ चीख निकली, "आह! मां…"

सुधा जी उसकी हरक़त पर लाचारी से सिर हिलाते हुए बोलती हैं, "तुम्हरा कुछो नहीं हो सकता हैं।"

यति अपना सिर सहलाते हुए मुंह बना कर सुधा जी को देखती हैं और बोलती हैं, "सारी ना तुमरी ग़लती हैं। तुम्हारी वजह से हमको लग गया।

"सुधा जी यति से बहस ना करके बाहर जाते हुए कहती हैं, "काम करों काम…"यति उन्हें जाता हुआ देख मुंह बनाने लगती हैं।

बेगूसराय High School…

एक लड़की स्कूल के पीछे खुद को स्टॉल से कवर किए मुंह छुपाएं इधर उधर निगाहें दौड़ाते हुए शायद किसी का इंतेज़ार कर रहीं थीं। अचानक वहां एक स्पोर्ट्स बाइक आकर रूकी तो वो लड़की उस पर बैठे लड़के को देख गुस्से में दांत भींचने लगती हैं। वो लड़का कोई और नहीं साहू खानदान के छोटे बेटे का सबसे छोटा बेटा ऋतिक साहू था। आंखों से शेड्स हटाते हुए उस लड़की की ओर बढ़ता हुआ बोलता हैं, "Hey Baby! बोलो का बात हैं काहे इतना अर्जेंट में हमको बुलाई? एक मिनट कहीं तुम्हारा मन हमारे बिना चैन में नहीं था इसके लिए तो नहीं? आह हा…", बोलते हुए ऋतिक खुद पर प्राउड करता हुआ आगे बोलता हैं, "बेशक अब हम हैं ही कुछ इतने ख़ास की हमसे दिल लगाने के बाद कहां किसी का दिल कहीं और लगता हैं।"

"का? सही बोले ना हम?", ऋतिक उस लड़की की गुर्राती गुस्से से लाल आंखों में देखता हुआ आई विंग कर देता हैं।

वो लड़की एक दम से अपने ऊपर से स्टॉल हटा कर गुस्से में दांत पीसते हुए बोलती हैं, "आप ना हमारे आगे ज़्यादा बनिए मत। आपको का लगता हैं हमको कुछ मालूम नहीं चलेगा?"

ऋतिक सामने खड़ी लड़की को इतने गुस्से और संजीदगी में देख कर सीधा होता हुआ पूछता हैं, "का बात हैं? हुआ का तुमको? और का बोल रहीं हो इ सब?"

वो लड़की यानि ठाकुर खानदान की छोटी लाड़ली और प्यारी बेटी चंचल ठाकुर…ऋतिक का कॉलर पकड़ कर धमकाते हुए बोलती हैं, "बेवकूफ़ नहीं हैं हम! हमको मालूम हैं आप का चाल चल रहें हैं। लेकिन हमारी बात सुन लीजिएगा अगर इ शादी हुई ना तो हम उ लड़की की जान लेंगे सो तो लेंगे ही साथ में हम आपको भी गोली मार कर खुद भी मर जायेंगे। समझें ना आप…"

ऋतिक को पल नहीं लगें, चंचल की बातों का मतलब समझने में। वो फौरन अपना गला साफ़ करतें हुए चंचल के क़रीब आता हुआ उसे बहलाने के लहज़े में बोलता हैं, "इ सब का बोल रहीं हों तुम? और इ शादी हम थोड़े कर रहें हैं? इ सब तुम्हारी अपनी बुआ का किया धरा हैं उ ही हमारे पापा को चढ़ा बढ़ा कर हमारी शादी करवाना चाहती हैं।"

चंचल उसके सीने पर हाथ रख पीछे धकेलते हुए बोलती हैं, "आपके मुंह में का ज़बान नहीं हैं? अगर उ शादी के बारे में बोल रही हैं तो उनको बताइए ना कि आप हमसे प्यार करतें हैं हमसे शादी करना चाहते हैं।"

ऋतिक चंचल को शांत करता हुआ बोलता हैं, "अच्छा ठीक हैं हम बोलेंगे…"

चंचल उसे घूर कर देखती हैं।ऋतिक फौरन अपनी बात सुधारता हैं, "हमारा मतलब हम पक्का सबको बता देंगे कि तुम ही साहू खानदान की छोटकी बहू बनोगी वरना और कोई नहीं।"

"हम्मम?"

ऋतिक आंखों से इशारा करके पूछता हैं, "खुश?"

चंचल खुद को कवर करतें हुए बोलती हैं, "इ में ही भलाई हैं। वरना हम का करेंगे उ आपको का पूरा बेगूसराय को भी अंदाज़ा नहीं होगा।"

ऋतिक चंचल को जाता हुआ देखता रहा।

अगले ही पल उसके माथे पर बल उभर आए, "कुछ तो करना पड़ेगा इसका।"

रात के वक़्त…

ऋतिक सीधा अपने कमरे की ओर बढ़ गया। तभी उसे टोकते हुए चंचल की बुआ यानी उसकी बड़ी मां की आवाज़ आई उसने पलट कर देखा।

मैत्री साहू उसकी ओर बढ़ती हुई बोलती हैं, "इतनी देर काहे लग गई? अब इ आदत सुधारों शादी तय हो गई हैं तुम्हारी अब। कुछे दिन में ज़िम्मेदारी आ जाएंगी तुम्हरे ऊपर समझें कि नहीं?"

ऋतिक की मां का देहांत उसके जन्म के समय ही हो चूका था। इसीलिए एक मैत्री साहू ही थीं जिन्होंने ऋतिक और उसके भाई को पूरे दिल से अपनाया था और पाल पोस कर इतना बड़ा किया था।

ख़ैर!ऋतिक सिर झुकाता हुआ बोलता हैं, "आगे से नहीं होगा बड़की मां…"

"हम्मम! कोई बात नहीं। हम तुमको इ बताने आएं थें कि हम तुम्हारे पास फ़ोटो भेजवा दिए हैं। देख लेना एक बार… जाओ जाकर मुंह हाथ धोकर आओ हम तब तक खाना लगवाते हैं।"

मैत्री की बात सुन ऋतिक थोड़ा हैरानी से पूछता हैं, "फ़ोटो?"

मैत्री जाते जाते रूकी और पलट कर उसे देख कर बोलती हैं, "तुम्हरी बीवी की।"

बोल कर वो आगे बढ़ जाती हैं।ऋतिक अपना फ़ोन निकाल कर आगे बढ़ जाता हैं।कमरे में आते उसके सामने यति की खूबसूरत फोटों थीं। यति की मासूमियत भरी खूबसूरती को देख ऋतिक बस देखता रह जाता हैं।

अचानक ऋतिक खोया हुआ बेयकीनी से बोलता हैं, "इ हमारी नज़र से कैसे बची रहीं?"

अगले ही पल ऋतिक के होंठों पर ख़तरनाक मुस्कुराहट आ खिली उसने बेहद गंदे लहज़े में यति की फ़ोटो को निहारते हुए कहा, "लेकिन अब जब चिड़िया खुद ही हमारे पिंजड़े में आ फंसी हैं तो हम भी कैसे इसको छोड़ सकतें हैं? माफ़ करना चंचल Baby अब का करें तुममें उ बात नहीं जो इसमें हैं।"

लाज़मी ऋतिक की आंखों में नज़र आती चाल साफ़ देखी जा सकती थीं।

यूं ही दिन बीते और शादी का दिन भी नज़दीक आ गया। उस वक़्त में चंचल पूरी तरह पागल हो चुकी थीं। उसने बेचैनी में अपना फ़ोन उठाया और बस ऋतिक का नंबर डायल करतीं रहीं थीं। लेकिन ऋतिक था कि उससे Irritate होकर अपना फ़ोन स्वीच ऑफ करके बैठा था।

चंचल गुस्से में अपना फ़ोन फेंकते हुए चिल्लाती हैं, "हमसे खेल खेल रहें हों ऋतिक साहू? अब देखो हम का करतें हैं। तुमसे प्यार करतें हैं इसका मतलब इ नहीं कि हर बार तुमको ऐसे ही छोड़ देंगे। इ बार नहीं…"

चंचल की लाल गुस्से भरी आंखों से आंसुओं का एक कतरा गालों पर आ फिसला।

रात के वक़्त…

"ऐ जी! आप इ… इ का बोल रहें हैं?", सुधा जी डबडबाई आंखों में आंसू भरें अपने सामने यति के पापा से पूछती हैं।यति के पापा यानी अजय जी अपने माथे पर हाथ रखें सामने बैठें थें। शादी की पूरी तैयारियां हों चुकीं थीं। बस इंतेज़ार था तो बारातियों का…

सुधा जी उनके पांव के पास बैठते हुए पूछती हैं, "अब का होगा जी? हम… हमारी बिटिया…"

अजय जी फौरन बोलते हैं, "हमारे जीते जी कुछो नहीं होगा हमारी बिटिया को।"

सुधा जी आंखों में आंसू लिए सवालियां नज़रों से अजय जी को देखती हैं। अजय जी उनका हाथ पकड़ अपने साथ एक खाली जगह पर लाते हैं।

वहीं यति के कमरे में…

यति बार बार उन ब्यूटीशियन के बीच बैठी चिढ़ सी रहीं थीं। परेशान होकर वो उन्हें टोकते हुए बोलती हैं, "अब का करना हैं? हो तो गया और कितना लीपा पोती करोगे तुम लोग?"

तभी कमरे में यति के ताई जी की बहू यानि उसकी भाभी आते हुए बोलती हैं, "अरे अभी से परेशान हो गई? परेशान ना हो गुड़ियां रानी…", अचानक वो यति को देख आंखें बड़ी किए बोलती हैं, "हे छठी मईया का लग रहीं हो यति।"

यति झट से बोलती हैं, "हैं ना भाभी? हम इ लोग से बोल ही रहें थें पूरा जोकर बना दी इ लोग हमको। कोनो तुम लोगों को काम दे दिया। कुछो आता जाता हो हैं नहीं। अब अगर दुल्हा हमको देख कर Heartatteck से मर गया ना तो देख लेना सारा नाम तुम लोगों का जाएगा।"

भाभी उसकी बातों पर हंसते हुए बोलती हैं, "अरे जोकर नहीं बल्कि आप तो एक दम सपनो की रानी लग रहीं हैं। और आपके दूल्हा डर के नहीं बल्कि आपकी खूबसूरती में बौरा जायेंगे। समझी…"

यति मुंह बना कर कुछ कहने को थीं कि तभी कमरे का दरवाज़ा खुला।

सुधा जी जल्दी से अंदर आती हुई सभी से बोलती हैं, "हो गया का?"

भाभी बोलती हैं, "हां लगता तो इहे हैं हो गया सब…"

सुधा जी भाभी से बोलती हैं, "अच्छा बात हैं। हमको ज़रा यति से कुछो बात करना था।"

भाभी सिर हिला कर बोलती हैं, "जी…"सभी के जाते सुधा जी जल्दी से दरवाज़ा लगा कर यति के पास आती हैं यति परेशान होते हुए बोलती हैं, "मां इ लोग…"

"Shhhh!", सुधा जी उसका हाथ पकड़ कर शांत कराते हुए बोलती हैं, "हमरी बात सुनो! यति तुमको हमरा कसम हैं। भाग जाओ इ शादी हैं। इ शादी तुम्हारा लिए बिलकुल सही नहीं हैं।"

यति के पैरों तले एक दम से ज़मीन सरक गई।वो हैरानी से सुधा जी को देखते हुए बोलती हैं, "इ… इ का बोल रहीं हो मां?"

सुधा जी यति को अपने सीने से लगा कर बोलती हैं, "हमसे अभी कोनो सवाल मत पूछो हमरी गुड़िया। बस तुम इहा से बहुत दूर भाग जाओ और कोनो के नज़र में मत आना हम तुमको ख़ुद बाद में सब कुछ बता देंगे।"

"लेकिन मां…"

यति बोलने को हुई लेकिन सुधा जी उसका हाथ पकड़ कर झुंझलाते हुए बोलती हैं, "बोले ना हम तुमको कोनों सवाल नहीं पूछो हमसे! समझ नहीं आता का तुमको? अब अगर कुछो पूछी तो हमारा मरा मुंह देखोगी समझी।"

यति एक दम से ब्लैंक हो जाती हैं।सुधा जी यति का हाथ अपने सिर पर रखते हुए कहती हैं, "खाओ हमारी कसम जब तक हम तुमको यहां नहीं बुलाते तब तक इहा अपनी शक्ल मत दिखाना।"

यति रोते हुए बोलती हैं, "लेकिन मां हमारी का गलती हैं? हम ऐसा का कर दिए मां?"

सुधा जी उसकी बात टोकते हुए बोलती हैं, "गलती हमारी हैं जो हम तुम्हारा ब्याह उ लोग के साथ तय किए।", सुधा जी यति के चेहरे को थाम कर बोलती हैं, "हमरी बच्ची! हम तुमको तुम्हारी जिंदगी को बरबाद नहीं होते देख सकते। हम हाथ जोड़ते हैं तुम्हारे आगे भाग जाओ इहा से…"

वो यति का हाथ थाम कर उसे कमरे के दरवाज़े तक लाती हैं। हल्का बाहर झांक कर देखने पर उन्हें अजय जी खड़े हुए नजर आते हैं। उनके इशारे पर वो यति को लेकर बाहर आती हैं।

घर के पीछे के दरवाज़े से यति को निकालते हुए अजय जी यति से वही कहते हैं जो सुधा जी ने कहा था।लाज़मी था! एक बाप ख़ुद अपनी इज़्ज़त का हाथ पकड़ कर उसे भागने पर मजबूर कर रहा था। बिना अपनी इज़्ज़त की परवाह किए बग़ैर…यति के समझ से सब कुछ परे था।

सुधा जी आखिरी बार उसे अपने सीने से अलग कर रोते हुए बोलती हैं, "जाओ यति…"

यति बेतहाशा रोती हुई ना में सिर हिलाते हैं। सुधा जी जबरदस्ती उससे अपना हाथ छुड़ा कर उसके मुंह पर दरवाज़ा बंद कर देती हैं।

यति कुछ पल के लिए वहीं खड़ी रोती रहीं।

अचानक उसका ध्यान टूटा उसने अपने आंसुओं को पोंछा और एक आखिरी उम्मीद लेकर खुद को पूरी तरह से रूपट्टे में समेट कर भागी।

भागते हुए अचानक वो किसी से टकराई। लेकिन गिरने से खुद को संभालते हुए वो सीधी रहीं।

"अरे संभाल कर…", एक आवाज़ आई।यति कुछ पल बिना अपना चेहरा दिखाए पीछे मूड कर खड़ी रहीं उसका बदन डर से कांप रहा था।

"अरे इ जीजा जी कहां रह गए? बारात आने वाला हैं और इ जीजा जी का कोनो आता पता ही नहीं हैं।", ये आवाज़ थीं यति के फूफा जी की जो उसके ताऊ जी से बातें कर रहे थें।

यति अगले ही सेकंड वहां से तेज़ी से भागी।

ज़ाहिर था शादी की तैयारी और भीड़ भाड़ में यति पर किसी का ध्यान ही नहीं गया।

यति बस बिना रूके नंगे पांव रोते रोते भागे जा रहीं थीं। अचानक पांव के नीचे ठेस लगने से वो मुंह के बल गिरने को हुई इतने में आसमान में तेज़ रौशनी के साथ आतिशबाजियां हुई।

यति आंखों में आंसू लिए आसमान को देखती हैं। उन जलते पटाखों को देख यति की आँखें बेबसी से भर आती हैं।

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